
Clarity on Delusion, Mind, Duty, Companionship, Devotion
Inner peace
तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई। सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।।
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
आतम अनुभव जब भयो, तब नहिं हरष बिषाद। चित्र दीप सम होइ रहा, ताहि करी बाद विवाद।।
ज्ञानी भूले ज्ञान कथि, निकट रहा निज रूप। बाहिर खोजें बापुरें, भीतर वस्तु अनूप।।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।।
चाह गई चिंता मिटी, मनुवा बेपरवाह। जिनको कछू न चाहिए, सो जग साहन साह।।
Duty
सूरा सोई सराहिये, लड़े मुक्ति के हेत। पुर्जा पुर्जी कट पड़े, तो भी ना छाड़े खेत।।
Devotion
कामी क्रोधी लालची, इनसे भगति न होय। भगति करे कोई सूरमा, जात बरन कुल खोय।।
कबीरा रेख सिंदूर की, काजर किया न जाय। तन मन में प्रीतम बसा, दूजा कहाँ समाय।।
जिहि घट प्रीति न प्रेम रस, पुनि रसना नहीं राम। ते नर इस संसार में, उपजि भए बेकाम।।
प्रेम पियाला जो पिये, शीश दच्छिना देय। लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय।।
Company of saints
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दिए जो गुरु मिलैं, तो भी सस्ता जान।।
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गाहि रहै, थोथा देई उड़ाए।।
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर। ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।।
सुरति करो मेरे सांइया, हम हैं भवजल मांही। आपै ही बहि जाएंगे, जो नहीं पकड़ो बांहि।।
प्रीति बहुत संसार में, नाना बिधि की सोय। उत्तम प्रीति सो जानिये, सतगुरु से जो होय।।
राम बुलावा भेजिआ, दिया कबीरा रोय। जो सुख साधु संग में, सो बैकुंठ ना होय।।
सब धरती कागज करूँ, लेखनी सब बनराज। सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए।।
Maya
माया छोडन सब कहें, माया छोड़ी न जाय। छोडन की जो बात करें, बहुत तमाचा खाय।।
माया मन की मोहिनी, सुर नर रहे लुभाय। इन माया सब खाइया, माया कोय न खाय।।
माया तो ठगनी भई, ठगत फिरे सब देस। जा ठग ने ठगनी ठगी, ता ठग को आदेश।।
जहाँ काम तहाँ नाम नहीं, जहाँ नाम नहिं काम। दोनो कबहु ना मिलें, रवि रजनी एक ठाम।।
कबीरा यह संसार है, जैसा सेमल फूल। दिन दस के ब्यबहार में, झूठे रंग ना भूल।।
Bhajan
तेरा मेरा मनुआ कैसे एक होई रे
तेरा मेरा मनुआ कैसे एक होई रे।।
मैं कहता आँखन की देखी, तू कहता कागद की लेखी।।
मैं कहता सुरझावनहारी, तू राख्यो उरझाई रे।।
मैं कहता कि जागत रहियो, तू जाता है सोई रे।।
मैं कहता निर्मोही रहियो, तू जाता है मोही रे।।
जुगन जुगन समझावत हारा, कहा न माने कोई रे।।
तू तो रंगी फिरै बिहंगी, सब धन डारा खोई रे।।
सदगुरु धारा निर्मल बाहै, बा में काया धोई रे।।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे।।
राम बिन तन की ताप न जाई
राम बिन तन की ताप न जाई, जल मे अग्नि उठी अधिकाई।।
तुम्ह जलनिधि मैं जलकर मीना, जल में रही जलही बिन पीना।।
तुम्ह पिंजरा मैं सुवना तोरा, दर्शन देहु भाग बड़ मोरा।।
तुम्ह सतगुरू मैं नौतम चेला, कहै कबीर राम रमु अकेला।।
जो मैं बौरा तो राम तोरा
जो मैं बौरा तो राम तोरा, लोग मरम का जाने मोरा।।
मैं बौरी मेरे राम भरतार, ता कारण रचि करो स्यंगार।।
माला तिलक पहरि मन माना, लोगनि राम खिलौना जाना।।
थोड़ी भगति बहुत अहंकारा, ऐसे भगता मिलै अपारा।।
लोग कहें कबीर बौराना, कबीर का मरम राम जाना।।
राम निरंजन न्यारा रे
राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रे।।
अंजन उतपति, ॐ कार, अंजन मांगे सब विस्तार,
अंजन ब्रह्मा, शंकर, इन्द्र, अंजन गोपी संगि गोविंद रे।।
अंजन वाणी, अंजन वेद, अंजन किया नाना भेद,
अंजन विद्या, पाठ-पुराण, अंजन वो घट घटहिं ज्ञान रे।।
अंजन पाती, अंजन देव, अंजन ही करे, अंजन सेव,
अंजन नाचै, अंजन गावै, अंजन भेष अनंत दिखावै रे।।
अंजन कहों कहां लग केता? दान-पुनि-तप-तीरथ जेथा,
कहे कबीर कोई बिरला जागे, अंजन छाड़ि निरंजन लागे।।